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गुरु या दीर्घ वर्ण

जिनके बोलने में कम समय लगता है,लघु या ह्रस्व वर्ण कहलाते हैं।
यथा -अ,इ, उ,ऋ , चन्द्र बिंदु( ँ) तथा इनके युक्त व्यंजन यथा-प,पि, पु, पृ,तथा पँ। इसका चिन्ह (l) खड़ी लकीर है।
जिनके बोलने में लघु वर्णों की अपेक्षा अधिक समय लगता है,वे गुरु या दीर्घ वर्ण कहलाते है।
यथा- आ,ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार(अं) और विसर्ग(:) तथा इनके युक्त व्यंजन यथा- पा, पी, पू, पे, पै, पो, पौ,पं, प:। इनका चिन्ह (s)है।

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उत्तरवर्ती या अनुवर्ती संख्याएँ

किसी प्राकृतिक संख्या से ढीक अगली प्राकृतिक संख्या उसकी उत्तरवर्ती या अनुवर्ती होती है। किसी भी प्राकृतिक संख्या में 1 जोड़कर उससे अगली अर्थात उत्तरवर्ती या अनुवर्ती संख्या प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण - संख्या 15 की उत्तरवर्ती 15+1 =16                         17 की उत्तरवर्ती 17+1 =18

कर्म के आधार पर क्रिया

कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं। (1) अकर्मक क्रिया (2) सकर्मक क्रिया (1) अकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता पर ही पड़े वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं । ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती । अकर्मक क्रियाओं के उदाहरण- (i) गौरव रोता है । (ii) साँप रेंगता है । (iii) रेलगाड़ी चलती है । (2) सकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं का फल (कर्ता को छोड़कर) कर्म पर पड़ता है वे सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक हैं । जैसे- (i) भँवरा फूलों का रस पीता है । (ii) रमेश मिठाई खाता है ।

गण किसे कहते है?

वर्णिक छंदों की गणना 'गण' के क्रमानुसार की जाती है। तीन वर्णों का एक गण होता है। गणों की संख्या आठ होती है। जैसे :- यगण, तगण, लगण, रगण, जगण, भगण, नगण और सगण। गुणसूत्र:- " यमाताराजभानसलगा " जिस गण को जानना हो उस गण के पहले अक्षर को लेकर आगे के फ़ो अक्षरों को मिलाकर वह गण बन जाता है। जैसे :- यमाता में l S S लघु गुरु गुरु यगण